अठारह पापस्थान सूत्र
|| अठारह पापस्थान सूत्र ||
प्रथम प्राणातिपात, द्वितीय मृषावाद,
तीसरा अत्ता-दान, चौथा माहिस,
पांचवां परिग्रह, छठा क्रोध, सातवां
मान, आठवां माया, नौवां लोभ, दसवां
राग, बारहवां दवेष, बारहवां कलह,
तेरहवां अभ्याख्यान, चौदहवां पशुन्य,
पंद्रहवां रति-आरती, सेलवां पर-परिवार,
सत्रह्वान्मय-मृषा-वाद,
अठारावां मिथ्यात्व-शल्य
इन तेरह पाप-स्थानों में से मेरे जीव ने जिस किसी पाप का सेवन किया हो,
मोक्ष हो, करते हुए का आनंद लिया हो,
उन सबका मन-वचन-काया से
मिच्चामि दुक्कडं. ।। 1।।