जैन अष्टप्रकारी पूजा

जैन अष्टप्रकारी पूजा

1. जल पूजा: जल
2. चंदन पूजा: चंदन की लकड़ी
3. पुष्प पूजा: फूल
4. धूप पूजा: धूप
5. दीपक पूजा: दीपक
6. अक्षत पूजा: चावल
7. नैवेद्य पूजा: मीठा भोजन
8. फल पूजा : ताजा फल

१. जल पूजा
पंचामृत – शुद्ध दूध, दहीं, घी, मिश्री और जल का मिश्रण
(दूसरे भी शुद्ध सुगंधी द्रव्य उसमें मिलायें जा सकते हैं.)

जल पूजा का रहस्य
पाप कर्म रूपी मेल को धोने के लिए प्रभु की जल पूजा की जाती है. हे परमात्मन् ! समता रूपी रस से भरे ज्ञान रूपी कलश से प्रभु की पूजा के द्वारा भव्य आत्माओं के सर्व पाप दूर हो. हे प्रभु! आप के पास सारी दुनिया की श्रेष्ठ सुख-समृद्धि है वैसी ही सुख-समृद्धि हमें प्राप्त हो. सारी मलीनता दूर हो. आत्मा के उपर का मल प्रभु प्रक्षाल से धो लिया है; हृदय में अमृत को भरा है.

जल पूजा के दोहे

२. चंदन पूजा
चंदन पूजा का रहस्य
हे प्रभु! परमशीतलता हमारे हृदय में, हमारे भीतर में आए. अपनी आत्मा को शीतल करने के लिए वासनाओं से मुक्त होने के लिए प्रभुजी की चन्दन पूजा उत्तम भावों से करता हूँ.

चंदन पूजा के दोहे

नवांग पूजा के दोहे

३. पुष्प पूजा
पुष्प पूजा का रहस्य

हे परमात्मा ! सुगंधित पुष्पों से अपने अंतर मन को सुगंधित बनाकर मैं आधि- व्याधि-उपाधि को नष्ट करना चाहता हूँ.
(सुंदर सुगंधवाले और अखंड पुष्प चढाने चाहिये, नीचे गिरे हुए और बासी पुष्प चढ़ायें नहीं जा सकते.)

पुष्प पूजा के दोहे

४. धूप पूजा
धूप पूजा का रहस्य

हे परमात्मा ! जिस प्रकार से ये धूप की घटाएँ ऊँची ऊँची उठ रही है वैसे ही मुझे भी उच्च गति पाकर सिद्धशिला को प्राप्त करना है. इसलिए आपकी धूप-पूजा कर रहा हूँ. हे तारक! आप मेरे आत्मा की मिथ्यात्व रूपी दुर्गंध दूर करके शुद्ध आत्मस्वरूप को प्रगटाओ.
(गर्भगृह के बाहर खड़े रहकर शुद्ध और सुगंधी धूप से धूप पूजा करनी चाहिये.)

धूप पूजा के दोहे

५. दीपक पूजा
दीपक पूजा का रहस्य
हे परमात्मा ! ये द्रव्य दीपक का प्रकाश धारण कर मैं आपके पास आया हूँ। मेरे अन्तर मन में कैवलज्ञान रूपी भाव दीपक प्रगट हो और अज्ञान का अंधकार दूर हो जाय, ऐसी प्रार्थना करता हूँ. जिस प्रकार यह दीपक चारों ओर प्रकाश फैलाता है उसी प्रकार मैं भी अपनी आत्मा की अज्ञानता को दूर कर आत्मा में ज्ञान का प्रकाश करना चाहता हूँ.
(गर्भगृह के बाहर खड़े रह कर दीपक पूजा करनी चाहिये.)

दीपक पूजा के दोहे

चामर वींझने का दोहा

६. अक्षत पूजा
अक्षत पूजा का रहस्य
हे प्रभु! जैसे अक्षत फिर से उगता नहीं है, वैसे ही इस संसार में मेरा पुनः जन्म न हो. अक्षत अखण्ड है वैसे मेरी आत्मा विविध जन्मों के पर्यायों से रहित अखण्ड शुद्ध ज्ञानमय अशरीरी हो. स्वस्तिक के स्थान पर सुंदर गहुँली भी आलेखित की जा सकती है.
(सूचना अक्षत पूजा में चावल की सिद्धशिला की देरी, उसके बाद दर्शन- ज्ञान-चारित्र की ढेरी और अंत में स्वस्तिक की ढेरी करनी चाहिये. आलंबन करने में पहले स्वस्तिक और अंत में सिद्धशिला करे.)

अक्षत पूजा के दोहे

स्वस्तिक पूजा के दोहे

७. नैवेद्य पूजा
नैवेद्य पूजा का रहस्य
हे प्रभो! मैंने विग्रह गति में आहार बिना का अणाहारी पद अनन्त बार किया है, लेकिन अभी तक मेरी आहार की लोलुपता नहीं मिटी है. आहार से निद्रा बढ़ती है. इसलिए आहार संज्ञा को तोड़ने के लिए और सात भय से मुक्त होने के लिए उत्तम नैवेद्य से पूजा करता हूँ.
(स्वस्तिक पर मिश्री, और घर की बनाई हुई शुद्ध मीठाई चढायें. बाजार की मीठाई, पीपर, चोकलेट या अभक्ष्य चीज न रखें.)

नेवेद्य पूजा के दोहे

८. फल पूजा
फल पूजा का रहस्य

हे प्रभु! मेरे नाथ, मैं आपकी फल पूजा कर रहा हूँ, जिससे मुझे मोक्ष रूपी फल प्राप्त हो. धर्म कर के बदले में संसारिक फल तो बहुत माँगा प्रभु ! और उसके कड़वे फल मैं भोगता रहा. अब बस प्रभु ! अब तो मोक्ष का ही मधुर फल दीजिए, ताकि फिर कुछ भी माँगना बाकी न रह जाय.
(श्रीफल, बादाम, सोपारी और पके हुए उत्तम फल सिद्धशिला पर रखें.)

फल पूजा के दोहे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *