श्री सिद्धाचलजी का चौथा चैत्यवन्दन – श्री पुण्डरीक स्वामीजी

श्री सिद्धाचलजी का चौथा चैत्यवन्दन – श्री पुण्डरीक स्वामीजी

आदिश्वर जिनरायनी, गणधर गुणवंत,
प्रगट नाम पुण्डरीक जस, महिमा महन्त। 1
पंच कोदि मुनींद सथ, अनसन तिहान किध,
शुक्ल ध्यान ध्याता अमल, केवल वर लिध। 2
चैत्री पुनमने दीने ए, पम्या पद महानंद,
ते दिन्थी पुंडरीक गिरि, नाम दान शख्लांद। 3

श्री पुण्डरीक स्वामी का स्तवन

एक दिन पुण्डरीक गांधारू रे लाल,
पूछे श्री आदि जिनन्द सुखहारी रे;
कहिए ते भवजल उतारी रे लाल,
पमिश परमानंद भव वारी रे।…एक.1

काहे जिन इन गिरी पमशो रे लाल,
ज्ञान अने निर्वाण जयकारी रे;
तीर्थ महिमा वधशे रे लाल,
अधिक-अधिक मंडन निर्धारी रे।…एक.2

इम निसुनिने इहां अविया रे लाल,
घटी करम कार्य दूर तम वारि रे;
पंच क्रोध मुनि परवर्या रे लाल,
हुआ सीधी हजूर भव वारि रे।…स.3

चैत्री पुनम दिन रे लाल,
पूजा विविध प्रकार दिलधारी रे;
फल प्रदक्षिणा कौसग्गा रे लाल,
लोगस्सा थुई नमुक्कर नरनारी रे।…एक.4

दश विष त्रिश चालिश भला रे लाल,
पचास पुष्पाणी मल अतिसारी रे;
नरभव लहो लीजी रे लाल,
जेम होय ज्ञान विशाल मनोहारी रे।…एक.5

श्री पुण्डरीक स्वामी की स्तुति

पुण्डरीक मण्डन पाय प्रणामि जे,
अदजश्वर जिनचंदाजी,
नेम विना त्रविश तीर्थकर,
गिरि चढ़िया आनंदीजी;
अगम महेन पुण्डरीक महिमा,
भाख्यो ज्ञान दिनंदाजी,
चैत्री पुनम दिन देवी चककेसरी,
सौभाग्य द्यो सुखंदाजी। 1

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