श्री सिद्धाचलजी का दूसरा चैत्यवन्दन – श्री शांतिनाथजी

शांति जिनेश्वर सोलमा, अचिरासुत वंदो,
विश्वसेनकुल नभोमणि, भविजान सुख कांडो। 1
मृगलंछन जिन औखुं, लख वरस प्रमाण,
हत्थिनौर न्यारी धानी, प्रभुलि गुन मनिखां। 2
चालीस धनुषनि देहदिया, समचोरस संथान,
वदन पद्म ज्यू चांडालो, दिथे परम कल्याण। 3
श्री शांतिप्रभु जी का स्तवन
शांति जिनेश्वर साचो साहिब, शांतिकरण ईन कलिमें हो जिनजी. तुं मेरा मनमें तुं मेरा दिलमें, ध्यान धरुं पल पल में साहिबजी. तुं मेरा मनमें… १
भवमां भमता में दरिशन पायो, आशा पूरो एक पल में हो जिनजी. तुं मेरा मनमें… २
निर्मळ ज्योत वदन पर सोहे, निकस्यो ज्युं चंद बादल में हो जिनजी. तुं मेरा मनमें… ३
मेरो मन तुम साथे लीनो, मीन वसे ज्युं जल में हो जिनजी. तुं मेरा मनमें… ४
जिनरंग कहे प्रभु शांति जिनेश्वर, दीठोजी देव सकल में हो जिनजी. तुं मेरा मनमें… ५
श्री शांतिप्रभु जी का स्तुति
शांति जिनेश्वर सामरी, जेनी अचिरा माय, विश्वसेन कुल उपन्यो, मृग लांछन पाय;
गजपुरी नायरिनो धानी, कंचन वराणी छे काय, धनुष चालिश्वर देहड़ी, लख वरसनु आय। १