श्री सिद्धाचलजी का पाँचवा चैत्यवन्दन – भगवान आदिनाथजी

श्री सिद्धाचलजी का पाँचवा चैत्यवन्दन – भगवान आदिनाथजी

आदिदेव अल्वेश्रु, विनितानि रे,
नाभिराय कुल मंदाणो, मरुदेव मय। 1
पंचसे धनुष्नि देहड़ी, प्रभुजी परम दयाल,
चौरासी लाख पूर्वाणी, जस आयु विशाल। 2
वृषभ लांछन जिन वृषधारुए,
उत्तम गुण मनि खान,
तस पद ‘पदम’ सेवन थकी,
लाहि अविचल थान। 3

भगवान ऋषभदेव का स्तवन

माता मरुदेविना नंद,
देखि तहरी मूर्ति मारु मन लोभानुजी;
मारु दिल लोभानुजी। देखी.
करुणा नगर करुणा सागर,
काया कंचनवन;
धोरी लांछन पौले कैए,
धनुष पांचसे मन।…माता.1

त्रिग्दे बेशी धर्म कहांता,
सुने परषदा बार;
जोजंगामिनी वाणी मीठी,
वर्षान्ति जलधर।…माता.2

उर्वशी रूडी अपाचरणे,
रामा छे मनरंग;
पाय ने उर रंजने कै,
करती नतरंभ।…माता.3

तुहि ब्रह्मा तुहि विधाता,
तू जगतारनहार;
तुज सरीखो नहीं देव जगतमा,
अरवदिया अधर।…माता.4

तुहि भ्राता तुहि त्राता,
तुहि जगत्नो देव;
सुरनरकिन्नर वासुदेव,
कर्ता तुज पद सेव।…माता.5

श्री सिद्धाचल तीरथ केरो,
राजा रुषभ जिनंद;
कीर्ति करे मानेकमुनि तहरी,
तलो भवभाय फंद।…माता.5

भगवान आदिनाथ की स्तुति

आदि जिनवर राया, जस सोवन काया,
मरुदेवी माया, धोरी लांछाण पाया;
जगत्शीति निपाय, शुद्धचरित्र पय;
केवलसिरी राया, मोक्ष नगरे सिद्धया। 1

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *