श्री सिद्धाचलजी के 21 खमासणा के दोहे

श्री सिद्धाचलजी के 21 खमासणा के दोहे

सिद्धाचल समरु सदा, सोरठ देश मोझार

मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार ।।१।।

अंग वसन मन भूमिका, पूजोपगरण सार

न्याय द्रव्य विधि शुद्धता, शुद्धि सात प्रकार ।।२।।

कार्तिक सुदि पुनम दिने, दश कोटि परिवार

द्राविड वारिखिल्लजी, सिद्ध थया निरधार ।।३।।

तिणे कारण कार्तिक दिने, सकल संघ परिवार

आदि जीन सनमुख रही, खमासमण बहुवार ।।४।।

एकवीश नामे वर्णव्यो, तिहा पहेलुं अभिधान

शत्रुंजय शुकरायथी, जनक वचन बहुमान ।।५।।

(१) सि….

समोसर्या सिद्धाचले, पुंडरिक गणधार;

लाख सवा महातम कह्यु, सुरनर सभा मोझार ।।६।।

चैत्री पुनमने दिन, करी अणसण एक मास;

पांचकोडी मुनि साथशु, मुक्तिनिलयमां वास ।।७।।

तिण कारण “पुंडरिकगिरि”, नाम थयुं विख्यात;

मन वच काये वंदीये, उठी नित्य प्रभात, ।।८।।

(२) सि….

वीश कोटीशुं पांडवा, मोक्ष गया ईणे ठाम;

इम अनंत मुक्ते गया, सिद्धक्षेत्र तिणे ठाम ।।९।।

(३) सि….

अडसठ तीरथ न्हावता, अंतरंग, घडी एक;

तुंबी जल स्नाने करी, जाग्यो चित्त विवेक ।।१०।।

चंद्रशेखर राजा प्रमुख, कर्म कठिन मळ धाम;

अचल पदे विमला थया, तेणे विमलाचल नाम ।।११।।

(४) सि….

पर्वतमां सुरगिरि वडो, जिन अभिषेक कराय;

सिद्ध हुआ स्नातक पदे, सुरगिरि नाम धराय ।।१२।। अथवा चौदे क्षेत्रमा, ऐ समो तीर्थ ना एक;

तिणे सुरगिरी नाम नमू, जिहां सुवास अनेक ।।१३।।

(५) सि….

ऐंशी योजन पृथुल छे, ऊंचपणे छव्वीश;

महिमाए मोटो गिरी, महागिरि नाम नमिश ।।१४।।

(६) सि….

गणधर गुणवंता मुनि, विश्वमांहे वंदनीक;

जेहवो तेहवो संयमी, विमलाचल पूजनीक ।।१५।। विप्र लोक विषधर सम, दुखिया भूतल मान;

द्रव्यलिंग कण क्षेत्र सम, मुनिवर चिप समान ।।१६।।

श्रावक मेघ समा कह्या, कर्ता पुण्यनुं काम;

पुण्यनी राशी वधे घणी, तिणे पुण्यराशी नाम ।।१७।।

(७) सि….

संयमधर मुनिवर घणा, तप तपता एक ध्यान;

कर्म-वियोगे पामिया, केवल-लक्ष्मी-निधान ।।१८।।

लाख एकाणु शिव वर्या, नारद शुं अणगार;

नाम नमो तिणे आठमुं, श्री पदगिरी निधान ।।१९।।

(८) सि…

श्री सीमंधर स्वामीए, ए गिरि महिमा विलास;

ईंद्रनी आगे वर्णव्यो, तिणे ए इंद्रप्रकाश ।।२०।।

(९) सि….

दश कोटि अणुव्रतधारा, भक्ते जमाडे सार;

जैन तीर्थ यात्रा करे, लाभ तणो नहीं पार ।।२१।।

तेह थकी सिद्धाचले, एक मुनीने दान;

देता लाभ घणो हुवे, महातीरथ अभिधान ।।२२।।

(१०) सि….

प्राये गिरी शाश्वतो, रहेशे काल अनंत;

शत्रुंजय महातम सुणी, नमो शाश्वतगिरी संत ।।२३।।

(११) सि….

गौ नारी बालक मुनि, चौ हत्या करनार;

यात्रा कर्ता कार्तिकी, रहे न पाप लगार ।।२४।।

जे परदारा लंपटी, चोरिना करनार;

देवद्रव्य गुरुद्रव्यना, जे वली चोरणहार ।।२५।।

चैत्री कार्तिकी पूनमे, करे यात्रा इणे ठाम;

तप तपता पातिक गळे, तेणे दृढशक्ति नाम ।।२६।।

(१२) सि…

भवभय पामी निकळ्या, थावच्चा-सुत जेह; सहसमुनिशुं शिववर्या, मुक्ति निलय गिरि तेह ।।२७।।

(१३) सि….

चंदा सुरज बेऊ जणा, उभा इण गिरी शृंग;

वधावीयो वर्णन करी; पुष्पदंत गिरि रंग ।।२८।।

(१४) सि….

कर्म कठण भवजल तजी, इहां पाम्या शिवसद्म;

प्राणी पद्म निरंजनी, वंदो गिरी महापद्म ।।२९।।

(१५) सि….

शिववहु विवाह उत्सवे, मंडप रचियो सार;

मुनिवर वर बेठक भणी, पृथ्वीपीठ मनोहार ।।३०।।

(१६) सि….

श्री सुभद्रगीरि नमो, भद्रा ते मंगल रूप;

जल तरू रज गिरिवर तणी, शीश चढावे भूप ।।३१।।

(१७) सि….

विद्याधर-सुर अपच्छरा, नदी शेत्रुंजी विलास;

कर्ता हरता पापने, भजिये भवी कैलास ।।३२।।

(१८) सि….

बीजा निर्वाणी प्रभु, गई चोविशी मोझार;

तस गणधर मुनीमां वड़ा, नाम कदम्ब अणगार ।।३३।।

प्रभु वचने अणसण करी, मुक्तिपुरीमां वास;

नाम कदंबगिरी नमो, तो होय लिलविलास ।।३४।।

(१९) सि….

पाताले जस मूळ छे, उज्जवलगिरिनुं सार;

त्रिकरण योगे वंदतां, अल्प होय संसार ।।३५।।

(२०) सि….

तन मन धन सुत वल्लभा, स्वर्गादिक सुख भोग;

जे वंछे ते संपजे, शिवरमणी संयोग ।।३६।।

विमलाचल परमेष्ठिनुं, ध्यान धरे षट् मास;

तेज अपूरव विस्तरे, पूरे (पुगे) सघळी आश ।।३७।।

त्रिजे भव सिद्धि लहे, ए पण प्रायिक वाच;

उत्कृष्टा परिणामथी, अंतर्मुहूर्त साच ।।३८।।

सर्व कामदायक नमो, नाम करी ओळखाण;

श्री ‘शुभवीरविजय’ प्रभु, नमता क्रोड कल्याण ।।३९।।

(२१) सि….

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