नवांग पूजा के दोहे

नवांग पूजा के दोहे

जल भरी सम्पुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत,
ऋषभ चरण अंगुठड़े, दायक भवजल अंत। १

जानु बङे काउसग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश,
खड़ा खड़ा केवल लह्यु, पूजो जानु नरेश। २

लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसीदान,
कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवी बहुमान। ३

मान गयुं दोय अंश थी, देखि वीर्य अनन्त,
भुजा-बले भव्-जल तरया, पूजो खन्ध-महंत। ४

सिद्धशिला गुण उजली, लोकान्ते भगवंत,
वस्या तेणे कारण भवी, शिरशिखा पूजंत। ५

तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत,
त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत। ६

सोल प्रहार प्रभु देशना, कण्ठे विवर वर्तुल,
मधुर ध्वनि सुरनर सुणे, तने गले तिलक अमूल। ७

ह्रदय कमल उपशम बले, बाड़्या राग ने द्वेष,
हिम दहे वन खण्ड ने, ह्रदय तिलक संतोष। ८

रत्नत्रयी गुण उजली, सकल सुगुण विश्राम,
नाभि कमरनी पूजना, करता अविचल धाम। ९

उपदेशक नव तत्त्व ना, तिणे नव अंग जिणंद,
पूजो बहुविध राग थी, कहे शुभ वीर मुणींद

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