चामर वींझने का दोहाचामर वींझने का दोहा
बे बाजुचामर ढाले, एक आगल वज्र उलाले;जइ मेर धरी उत्संगे, इंद्र चोसठ मलीआ रंगे.प्रभजीनुं मखु डुं जोवा, भवो भवनां पानतक{...}
बे बाजुचामर ढाले, एक आगल वज्र उलाले;जइ मेर धरी उत्संगे, इंद्र चोसठ मलीआ रंगे.प्रभजीनुं मखु डुं जोवा, भवो भवनां पानतक{...}
द्रव्य दीप स-ुवववेकथी, करतां दु:ख होय फोक.भाव प्रदीप प्रगट हुए, भामसत लोका-लोक……………………1.{...}
ध्यान घटा प्रगटावीओ, वाम नयन जिन धूप ।मिच्छत्त दुर्गंध दूरे टले, प्रगटे आत्म स्वरुप llअमे धूपनी पूजा करीए रे, ओ{...}
सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो-गत संताप ।सुमजंतु भव्यज परे, करीओ समकित छाप ।।{...}
जल भरी सम्पुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत,ऋषभ चरण अंगुठड़े, दायक भवजल अंत। १ जानु बङे काउसग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश,खड़ा{...}
शीतल गुण जेह मां रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग ।आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग ।।{...}
ज्ञान कलश भरी आतमा, समता रस भरपुर.।श्री स्जनने नवरावतां, कमय होये चकचूर।।………………………1. जल पूजा जुगते करो, मेल अनादद ववनाश.जल पूजा{...}